सिंगरौली में मुआवजा घोटाला: आदित्य बिड़ला कंपनी और प्रशासन पर गंभीर आरोप, विस्थापितों का हक छीना

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सिंगरौली: मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले से एक चौंकाने वाली खबर सामने आ रही है, जहां निजी कंपनी आदित्य बिड़ला को फायदा पहुंचाने के लिए जिला प्रशासन पर गंभीर आरोप लग रहे हैं। विस्थापित ग्रामीणों का दावा है कि प्रशासन ने कोयला खनन के लिए बंधा कोल ब्लॉक से प्रभावित 3500 से ज्यादा मकानों को अवैध घोषित कर दिया है। इतना ही नहीं, 1000 करोड़ रुपये के मुआवजे को 350 करोड़ रुपये में समेटने का खेल भी सामने आया है। आखिर क्या है पूरा मामला? आइए, विस्तार से जानते हैं।

सिंगरौली जिले में कोयला खनन के लिए बंधा कोल ब्लॉक के तहत बंधा, देवरी, पिडरवाह सहित पांच गांवों की जमीनों का अधिग्रहण शुरू हुआ। जब ग्रामीणों को अपनी जमीनें छिनने का डर सताने लगा, तो उन्होंने अपनी निजी जमीनों पर मकान बनाए। कई मकान पहले से मौजूद थे। ग्रामीणों ने प्रशासन से जमीन को डाइवर्ट करवाकर शुल्क जमा किया और विधिवत मकान निर्माण किया। ये सारे निर्माण भू-अर्जन अधिनियम की धारा 11 से पहले पूरे हो चुके थे। कंपनी प्रबंधन और राजस्व विभाग की टीम ने इन मकानों का मूल्यांकन किया और प्रत्येक मकान की नंबरिंग भी की गई।

मूल्यांकन के बाद, इन मकानों की सूची जारी की गई और इन्हें मुआवजा सूची में शामिल करने का वादा किया गया। लेकिन अब ग्रामीणों का आरोप है कि कंपनी और प्रशासन की साठगांठ से भू-अर्जन नियमों को ताक पर रखा गया। जिला प्रशासन ने एक नया एवार्ड प्रस्ताव पारित किया, जिसमें 3500 से ज्यादा मकानों को अवैध घोषित कर दिया गया। हालांकि, 815 मकानों को वैध माना गया है, लेकिन उनकी सूची तक सार्वजनिक नहीं की गई। इस अस्पष्टता और अन्याय से ग्रामीणों में भारी आक्रोश है।

ग्रामीणों का कहना है कि जिला प्रशासन ने निजी कंपनियों को कलेक्टर कार्यालय में ही कमरे आवंटित कर दिए हैं, जहां से साठगांठ का खेल चल रहा है। सूत्रों के मुताबिक, भू-अर्जन अधिकारी राजेश शुक्ला और कलेक्टर चंद्रशेखर शुक्ला आपस में रिश्तेदार हैं। आरोप है कि ये दोनों कंपनी से अनुचित लाभ लेकर उसे हजारों करोड़ रुपये का फायदा पहुंचा रहे हैं। इस मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी ने पिछले महीने प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के नेतृत्व में एक विशाल रैली निकाली थी। पार्टी ने चेतावनी दी है कि अगर विस्थापितों की मांगें पूरी नहीं हुईं, तो बड़ा आंदोलन किया जाएगा।

दूसरी ओर, मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रभारी मंत्री ने मुआवजे की जांच दोबारा कराने का आश्वासन दिया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या ग्रामीणों को उनका हक मिल पाएगा? या फिर प्रशासन और कंपनी की साठगांठ के आगे उनका हक दबकर रह जाएगा? ग्रामीणों का कहना है कि वे अपने अधिकार के लिए आखिरी सांस तक लड़ेंगे।

सिंगरौली का यह मामला न केवल प्रशासनिक पारदर्शिता पर सवाल उठाता है, बल्कि ग्रामीणों के हक और सम्मान की लड़ाई को भी उजागर करता है। क्या इस मामले में सच सामने आएगा? क्या विस्थापितों को न्याय मिलेगा? यह देखना दिलचस्प होगा। हम इस खबर पर नजर रखेंगे और आपको हर अपडेट से अवगत कराएंगे।

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